Wednesday, August 10, 2011

मुसलमान स्रष्टाक मैथिल भावना @ शेख शब्बीर अहमद 'जख्मी'

'जख्मी' क गीत

ढोल पीटिकऽ बाजि रहल छी, आर बजाकऽ तासा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा

पहिरिकऽ उज्जर बर्फक कम्मल
उत्तर ठाढ़ हिमालय छै
दक्षिण दिशामे पतित पावनी
गंगा नदी विराजै छै
मधुर मनोहर मुहकेर बोली, ढेओरल नीपल बासा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा

पहिरन लोकक साँची धोती
पाग दोपट्टा अंगा
गंगासँ हिमगिरिधरि पसरल
केन्द्रस्थल दरभंगा
भादो रिमझिम ताल सुनाबए, देखबए साओन तमासा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा

ककरो जीपर अल्ला
अथवा रामक नाम छै
केओ रमौने धूनी चट्टा
पाकड़ि तऽर अविराम छै
मन्दिरमे परसादी भेटए मस्जिदमे बतासा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा

मिथिला देश सदासँ रहलै
भेदभावसँ दूर
मुल्लाण्डित सभ रहै छथि
परम्परा मशहूर
गीत मैथिली सुनबथि जख्मी साजि मनक अभिलाषा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा

Friday, May 27, 2011

अनुकृतिक भोरुकबा : जीवछ दास

हेल्लो मिथिलामे अनुकृति-कलामे माहिर कलाकार जीवछ दासक कला परसि रहल छी। हिनका विभिन्न चिडइ-चुनमुन्नीक आवाज बाहर करबामे महारत हासिल छनि। सप्तरीक राजविराजमे रहि अपन कला-साधना करैत आएल जीवछ भोरुकबा एफएमसँ सम्बद्ध छथि आ नोन-मिर्चाइ तथा लोटपोट कार्यक्रम चलबैत छथि। हुनकासङ्गे किछु समय पहिने धीरेन्द्र प्रेमर्षि भोरुकबा एफएमक स्टूडियोमे बातचीत कएने रहथि। बातचीतक क्रममे ओ अपन अनुकृति-कला सेहो प्रस्तुत कएने रहथि। भोरुकबा एफएम, राजविराजक विनय कर्ण, महेन्द्र मण्डल 'वनवारी' आदिक सहयोगमे तैयार कएल गेल ई सामग्री एहि विश्वासक सङ्ग एहिठाम राखि रहल छी जे भावकलोकनिकेँ पसिन्न पडतनि।


Monday, May 23, 2011

आजुक मिथिला-गान @ धीरेन्द्र प्रेमर्षि


मानैत छी जे नहि अछि एक्खन, दुनियाकेर भूगोलमे
तैयो छी हम बचाकऽ रखनहि जकरा माइक बोलमे
सोहर, लगनी, जटाजटिन कि झिझिया, साँझ, परातीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे
लोहछल नस-नसमे एखनहु तिरहुतिया सोनित बरकैए
केहनहु बज्जर मैथिलकेर धड़कनमे मिथिलहि धड़कैए
जिनगीक तुलसी चौरामे नित बरैत दीपक बातीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे
बगय-बानि बदलल रहितो माथा संस्कारक पाग जतऽ
विद्यापतिकेर गीतक सङ्ग पसरल मधुमय अनुराग जतऽ
होरीक रङ्ग, धुरखेलक सङ्ग सुकरातीक उक्कापातीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे
सुरुजक अगुआनीलए जइठाँ महिँस-पीठपर पसर खुलै
सैर बराबरि गबैत जतऽ पौरखिया चाँचर प्रेम झुलै
करसी जरबैत घूरमे आऽ कनकन्नी पचबैत गाँतीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे
मन-मनमे दहकैत चिनगीकेँ हवा लगाकऽ प्रखर करी
अन्हड़िमे बहकैत जिनगी ठेकनाएल पथपर मुखर करी
कतऽ-कतऽ बौआएब कते, जोड़ी मन-तार गतातीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे

Sunday, May 22, 2011

अबै रे मीता अबै जो

हेल्लो मिथिला ब्लगक शुरुआत २०६३ सालक नव वर्षारम्भक सङ्गहि कएने रही। ई ओ समय छल जखन नेपालमे लोकतान्त्रिक आन्दोलन उत्कर्षपर छल। एही समयमे pallav.blogsome.com क माध्यमेँ पल्लव पत्रिकाकेँ जीवन्त बनएबाक सेहो नियार कएने रही। मुदा समय, साधन आ तकनिकी ज्ञानक अभावक कारणेँ निरन्तर नहि भऽ पाएल। बादमे पासवर्ड हरा गेल आ अपने भोतिया गेलहुँ। एहि बीचमे कोनो धरानी हरेलहा चीजसभ उपर भेल। तेँ premarshi.wordpress.com शुरू कऽ चुकलाक बाबजूद एहि दुनूक ऐतिहासिकताकेँ निरन्तरता देबाक हिसाबेँ एकरा पुनः आगाँ बढा रहल छी।

एहि ब्लगकेँ Hello Mithila रेडियो कार्यक्रमक प्रतिच्छायाक रूपमे सेहो लऽ चलबाक विचार रहए, मुदा एखनधरि एहिमे Audio File संलग्न करबाक दऽर नहि भेटल अछि। जँ किनको Blogspot पर एहि सुविधा दऽ जानकारी हुअए तँ कृपया मार्गदर्शन करब।

सम्प्रति एकटा अपन गीत राखि रहल छी, जकर रचनाकार श्रीराज (नेपालमे आधुनिक मैथिली साहित्यकेँ जीवन आ विस्तार देनिहार डा. धीरेन्द्रक माझिल भाइ) आ गायकद्वय अविनाश मिश्र तथा मुकेश प्रियदर्शी छथि। एकरा हमसभ 'डेग' नामक एल्बममे सङ्ग्रहित कएने छी। एकर गीतसभकेँ सङ्गीत-नाट्यक रूपमे विभिन्न स्थानपर प्रस्तुत सेहो कएल गेल रहैक, जकर निर्देशन कएने छलाह रमेश रञ्जन।

Wednesday, May 03, 2006

नव वर्ष २०६३ क बहन्ने

विक्रम संवतक २०६३ सालमे हमसभ प्रवेश कऽ गेल छी। नव वर्षक सङहि हमसभ जुडशीतलक माध्यमसँ नीकजकाँ जुडाइयो गेल छी आ सलहेसक सुमिरन सेहो कऽ लेने छी। मिथिलामे दुःखहर्ताक रूपमे अङ्गीकृत सलहेस लोकदेवताक रूपमे पूजित सेहो छथि। सलहेसकेँ पूजिकऽ हम मिथिलावासी हरेक वर्ष अपन मानसिक उदात्तताक परिचय देल करैत छी। आइयो जाति-पातिक सिक्कडिमे जकडाएल मैथिलसभमे जँ कथित सम्भान्त कोनो व्यक्ति सेहो तथाकथित छोट जाति कहि सम्बोधित दुसाधकेँ पूजैत अछि तँ एकरा छोट बात नहि मानल जा सकैत अछि। मुदा धार्मिकताक प्रभावसँ मात्र देखल जाइत एहि संस्कृतिकेँ व्यवहारमे उतारब बेसी आवश्यक छैक। हमरा लगैत अछि सलहेस फुलवारिमे प्रत्येक वर्षक पहिल दिन आमलोकक लेल कौतुकक रूपमे प्रकट भेनिहार आर्किड फूल इएह सन्देश दैत अछि। समग‍ रूपमे जातीय सबलता तथा सामुदायिक समृद्धिक लेल आपसी सामञ्जस्य आवश्यक होइत छैक।

हारजकाँ हारमक गाछपर लटकल पाओल जाएवला ओ उजरा फूल शान्ति आ प्रेमक सन्देश सेहो दैत छैक, जकर आइ नेपालमे सर्वाधिक महत्त्व छैक। मुदा आमलोकक धारणा आ भावनाकेँ मात्र अभिव्यक्ति दैत आएल ओ फूल सेहो जँ राज्य आ राज्य-सञ्चालकक इएह रबैया रहलैक तँ आब लाल भऽकऽ फुलाए लागत। ओहने लाल, जेहन लाल भऽ गेल छैक सम्प्रति नेपालक जनताक उत्साह एवं भावना। ई लाल क्रान्तिक रङ्ग मात्र नहि छियैक, अढाइ सए वर्षसँ निरन्तर देशक सोनित चुसनिहार जोँकक कारणे रक्तशून्य भेल धर्तीमैयाक प्रति समर्पणक लेल राष्ट्रक सपूतसभद्वारा कएल गेल रक्तदान सेहो छियैक। सदतिसँ दबाओल जाइत रहल हमरासभक आत्मसम्मानक ललकार सेहो छियैक। एहि ललकारकेँ अपन सक्रिय एवं रचनात्मक सहयोगसँ आओर लालिमामय बनाएब हमरासभक दायित्व अछि।

नेपालमे एखन सभसँ प्रमुख विषय अछि राष्ट्रिय कुशलताक। से देशकेँ मृत्युशय्यासँ उबारि पुन: स्वस्थतादिस अग्रसर करएबाक लेल नेपाली जनता जागि गेल अछि, तन-मन-धनसँ लागि गेल अछि। मैथिलोसभ साङ्केतिक आ साहित्यिक रूपेँ नेपालक एखनुक सर्न्दर्भकेँ किछु मात्रामे अभिव्यक्ति दऽ रहल छथि। सन्तोष करबाक सभसँ पैघ आधार इएह अछि। चिन्ता अछि तँ खालि अपन जातिक शिथिलतापर। एखनधरि कोनो मैथिल सङ्घ-संस्था वा व्यक्ति एहिदिस कोनो तरहक प्रत्यक्ष संलग्नता देखबैत नहि पाओल गेल अछि। हमरा लगैत अछि- कोनो समयक जाज्वल्यमान मिथिला आइ एहि लेल शिथिला भऽ गेल अछि, जे हमसभ 'भोजमे आगू, जुद्धमे पाछू' वला कहबीकेँ जिनगीक मूलमन्त्रे बना लेने छी। आबो जँ 'कामकाजमे कोढी बाबा भोजनमे होशियार' बनल रहब तँ ओ दिन दूर नहि रहत, जखन हमरासभक सभ होशियारी धएले रहि जाएत।

हमरासभक माथ अक्सरहाँ गर्म भऽ गेल करैत अछि। ताहीदुआरे हमरासभक बुजुर्ग जुडशीतलक दिन भोरेभोर हमरासभक माथपर पानिक थपकी दैत छथि। मुदा हमरासभक माथ शासनक प्रचण्ड धाहीसँ कहियो नहि बचि सकल अछि। राज्यक सौतिनियाँ व्यवहारक धाहसँ टहकैत हमर माथ जखन कोनो जुडशीतलमे नहिएँ जुडाइत अछि तँ फेर चाणक्यजकाँ किएक ने प्रचण्ड रूपेँ टहकऽ लगैत अछि? हमरासभकेँ कूश कतबो पीडा दैत किएक ने भेसा जाए, हमसभ ओकरा पूजे-सामग्री बनएबामे बेसी एकाग्रचित्त भऽ जाइत छी। तखन भला ओ कूश हमरेसभकेँ बेर-बेर किएक ने निशाना बनाओत!

हमरा विचारेँ मैथिलसभ जे-जतऽ छी, सभकेँ अपन-अपन मोर्चासँ अपन मैथिलत्ववला पहिचान आ छविकेँ कायम रखैत नेपालमे लोकतन्त्रक लेल आवाज बुलन्द करबाक चाही। किएक तँ लोकतन्त्रमे मात्र आमलोकक आवाज कनियोँ सूनल जा सकैत अछि। एखन तँ उएह पइर भऽ रहल अछि जे 'भैँस के आगे वीन बजाए, भैँस रहे पगुराइ'। एहिमे दोस भैँसक मात्र नहि, वीन बजौनिहारक सेहो छैक। किएक तँ ओकरा भैँसक चरित्र बूझल होएबाक चाही। भैँसक आगाँमे जा कऽ वीन बजौनाइ समयक बर्वादी छियैक। आब तँ देशकेँ चरि-चरि सिंहासनपर बैसि पाउजु कएनिहार भैँसकेँ गोहालीसँ खदेडनाइए सभसँ पैघ बुधियारी छियैक। आ ई बुधियारी देखएबाक उपयुक्त मौका एखने छैक। एखन जँ हमसभ चूकि जाएब तँ ई हमरासभक ऐतिहासिक भूल हएत। हमरा ई कहैत कनेको अन्यथा नहि बुझा रहल अछि जे आबक दिनमे मिथिला, मैथिल, मैथिलीक लेल जँ किछु कएल जा सकैत अछि तँ नेपालहिसँ। अन्यत्र मैथिलोसभमे अपेक्षाकृत मैथिल भावना मुरझाइतसन देखल जा रहल अछि। नेपालमे एखन जनता जागल छैक। मिथिलाकेँ सेहो जगएबाक चाही। किएक तँ हमर मान्यता अछि-

जखन जन-जन ई मिथिलाक जागि जेतै भाइ
हेतै सोन सनक भोर, राति भागि जेतै भाइ।

मिथिला मैथिल मैथिलीपर गर्व कएनिहार सम्पूर्ण स्वत्वप्रेमी जनसमुदायकेँ नव वर्ष विक्रम संवत २०६३ क हार्दिक मङ्गलमय शुभकामना। जय मैथिली।

धीरेन्द्र प्रेमर्षि
सम्पादक-प्रकाशक
पल्लव, मैथिली साहित्यिक